Rajani katare

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बुढ़ापे की ना करो फिक्र

लेखनी लेखक मंच
प्रतियोगिता हेतु

दिनाँक- 8/5/24
विषय- स्वैच्छिक 

"बुढ़ापे की न करो फ़िक्र" 
      

काहे की चिंता फ़िकर,
धन दौलत हो पास,
बुढ़ापे की न करो फ़िकर,
उम्र बढ़ रही, बढ़ने दो भाई,

क्यों हो किसी पर निर्भरता,
निवेश करो पूंजी का,
बुढ़ापा कटने में रहे सरलता,
उम्र बढ़ रही, बढ़ने दो भाई,

ध्यान रखो अपनों का,
और ध्यान रखो अपना,
स्वस्थ रखो शरीर अपना,
उम्र बढ़ रही, बढ़ने दो भाई,

परिवार का पालन कर दिया,
बेटा बेटियों पर खूब,
पैसा और प्यार लुटा दिया,
उम्र बढ़ रही, बढ़ने दो भाई,

समझो शरीर को बेटा अपना,
ध्यान रखो उसका खूब,
साथ वो देगा मानो अपना,
उम्र बढ़ रही, बढ़ने दो भाई,

भावनाओं में कभी न बहना,
छोड़कर अपना सब कुछ,
दौलत किसी के नाम न करना,
उम्र बढ़ रही, बढ़ने दो भाई,

बदल जाएं कब अपने ही,
कुछ पता नहीं चलता,
परिस्थितियां आएं कैसी ही,
उम्र बढ़ रही, बढ़ने दो भाई,

पल का भरोसा नहीं, 
कौन कब साथ छोड़ दे आपका,
जीवन का ही भरोसा नहीं,
उम्र बढ़ रही, बढ़ने दो भाई,

खुल कर खूब हँस लो,
ईश्वर ने दिया मानव जन्म,
जिंदादिली से हँसकर जी लो,
उम्र बढ़ रही, बढ़ने दो भाई,

बढ़ना तो है उम्र का क्या...? 
दी है जिंदगी ईश्वर ने,
परवा क्या करना...?
ज़िन्दादिली से जियो यारों,
उम्र बढ़ रही है, बढ़ने दो भाई ।

काव्य रचना-रजनी कटारे "हेम"
          जबलपुर म.प्र.

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2 Comments

Mohammed urooj khan

09-May-2024 01:44 PM

👌🏾👌🏾

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kashish

09-May-2024 07:09 AM

V nice

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